Bill Gates Hindi Summary

 Bill Gates by Gigl Hindi Summary

Bill Gates by gigl Hindi Summary

---------- About Book ----------

किताब के बारे में:

ये किताब हमारे समय के सबसे बड़े इनोवेटर और सक्सेसफुल बिजनेसमेन की जिंदगी के बारे में बताती है. इसमें बिल गेट्स की जिंदगी से जुडी कई सारी घटनाओं का जिक्र है और साथ ही ये भी हमे ये भी सीखने को मिलता है कि अगर हम दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनना चाहते है तो ये नामुमकिन  नहीं  है. 

ये किताब किस-किसको पढ़नी चाहिए? 

हर वो  इंसान  जो जिंदगी में कुछ बड़ा अचीव करना चाहता है, उसे ये किताब  ज़रूर पढनी चाहिए. इसमें बिल गेट्स की स्टोरी है जो आपको अपने गोल्स अचीव करने की दिशा में पहला क़दम उठाने के लिए इंस्पायर करेगी. हर  इंसान  जो अपने सपने, अपना पैशन फोलो करना चाहता है, उसे ये किताब एक बार तो पढनी ही चाहिए और  दूसरों  को भी पढने के लिए एनकरेज करना चाहिए. 

---------- SUMMARY ----------

Bill Gates Hindi Summary

अगर आप दुनिया के सबसे अमीर इंसान होते तो आपको कैसा लगता? काफी एक्साईटिंग लगता ना?  मैं  शर्त लगाके ये बात कह सकता हूँ कि जो कोई भी ये पढ़ रहा होगा, उसने अपनी जिंदगी में कम से कम एक बार ऐसा  ज़रूर सोचा होगा कि काश वो दुनिया का सबसे अमीर इंसान होता. ये वो सपना है जो ज़्यादातर लोग देखते है पर  उनमें  से कितने  लोगों  का सपना पूरा होता है? 

वेल, एक ऐसे आदमी को तो हम जानते है जिसने अपना अमीर बनने का सपना बहुत कम उम्र में ही पूरा कर लिया था. जी हाँ, वो और कोई  नहीं  बल्कि बिल गेट्स है जो दुनिया के उन  लोगों  में से एक है जिन्होंने सबसे पहले इनोवेशन और टेक्नोलोजी की शुरुवात की थी. उनके अंदर टेलेंट, बिजनेस स्किल और ह्यूमेनिटी का परफेक्ट बेलेंस है. हम सबने उनका नाम सुना है, हम सब जानते है कि उन्होंने क्या कुछ हासिल किया है, लेकिन क्या हममें से हर कोई उनकी जीवन के बारे में जानता है? वो क्या थे, कैसे थे, कैसे वो इस मुकाम पर पहुंचे, ये शायद हम से बहुत से लोग नहीं जानते होंगे. 

सपने तो सब देखते है पर सिर्फ कुछ ही लोग उन सपनों को पूरा कर पाते है.ये लोग किसी  मैं जिकल पॉवर के साथ  नहीं  जन्मे होते. ये हमारे जैसे ही लोग है, लेकिन  उनमें  कुछ तो ख़ास बात होती है. तो क्या है ये ख़ास बात? क्या उन्हें औरों से अलग बनाता है?

दुनिया में ऐसी कोई वजह  नहीं  है जो आपको वो हासिल करने से रोक सके, जिसे पाने का आप सपना देखते हो. इन रेवोल्यूशनरी  लोगों  को देखो! इनसे हम काफी कुछ सीख सकते है, जैसे  इन्होंने अपने लिए खुद रास्ता बनाया वैसे ही हम भी बना सकते है. तो आइए, तो आइए! उस इंसान की कहानी सुनते है जो दुनिया का सबसे अमीर और आल टाइम इन्फ्लुएंशल इंसान माना जाता है यानी बिल गेट्स: 

विलियम गेट्स सीनियर और  मैंरी  मैंक्सवेल के घर 28 अक्टूबर, 1955 के दिन रात नौ बजे के बाद एक बच्चे का जन्म हुआ था जिसका नाम रखा गया विलियम हेनरी गेट्स III. इनकी फेमिली अपर मिडल क्लास फेमिली थी जहाँ सबने अपनी जिंदगी में बड़े-बड़े मुकाम हासिल किये थे. बिल गेट्स एक ऐसे परिवार में पैदा हुए थे जो अमीर और बिजनेस माइंडेड  लोगों  का परिवार था. ये लोग पोलिटिकल कनेक्शन तो रखते ही थे, साथ ही कम्यूनिटी सर्विस में भी विशवास रखते थे. बिल गेट्स के पिता एक जाने-माने लॉयर थे जिनकी पहुंच काफी ऊपर तक थी, और उनकी माँ एक सम्मानित लोकल टीचर थी जो अपनी पूरी जिंदगी लोकल कम्यूनिटी सर्विस से जुडी रही. बिल अपने भाई-बहनों में बीच के थे, उनसे बड़े एक भाई और एक छोटी बहन थी. 

बिल को बचपन से ही हर सुख-सुविधा मिली थी जो उनके लिए एक स्ट्रोंग फाउंडेशन की तरह थी, वो बचपन से ही काफी आज़ाद और खुले माहौल में पले-बढ़े थे. घर पर भी उन्हें खूब सारा प्यार-दुलार और अच्छी देखभाल मिली थी. उन्हें कभी किसी चीज़ की कमी महसूस  नहीं  हुई. बिल की सोशल लाइफ शुरुवात से ही काफी एक्टिव रही थी. वो बचपन में कई तरह की एक्टिविटी करते थे और स्पोर्ट्स में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे. कुल मिलाकर बिल का बचपन बेहद खुशहाल था. 

जैसे-जैसे बिल की उम्र बढती गई, उनके शार्प और इंटलेक्ट माइंड के लक्षण नजर आने लगे. बचपन से ही वो बेहद तेज़ और चालाक लडके थे और पढाई में हमेशा अव्वल रहते थे. हालाँकि रेगुलर स्कूल सिस्टम उन्हें कभी खास पंसद  नहीं  आया. उन्हें सिंपल पढ़ाई में उतना इंटरेस्ट  नहीं  था. वो बड़ी जल्दी बोर हो जाते थे इसलिए कोई भी चीज़ उन्हें ज्यादा देर तक बाँध कर  नहीं  रख पाती थी, धीरे-धीरे उनकी फ्रस्ट्रेशन उनके व्यवहार में भी झलकने लगी थी. 

एक बार बिल जब बारह साल के थे जो उनके पिता गेट्स सीनियर ने उनके मुंह पर पानी फेंक कर मारा था क्योंकि बिल अपनी माँ से बुरी तरह झगड़ पड़े थे. तब उनके पेरेंट्स ने उनके इस गुस्से और बदले व्यवहार की जड़ तक पहुँचने की ठानी और उन्हें एक कांउसलर के पास लेकर गए ताकि वो बिल की इस समस्या का कोई उचित समाधान निकाल सके. 

उन्हें पता चला कि बिल एक बेहद टेलेंटेड लड़का है जिसे अपना टेलेंट बाहर निकालने का मौका  नहीं  मिल पा रहा, इसलिए उसे एक स्पेशल स्कूल की जरूरत थी जहाँ उसे सही डायरेक्शन और गाईडेंस मिल सके. और इस तरह तेरह साल के बिल गेट्स को सीएटल लेकसाइड स्कूल भेज दिया गया जो ख़ास उनकी तरह के बच्चो के लिए बना था. लेकसाइड में एक काफी मुश्किल स्टडी प्रोग्राम रखा गया था  जिसमें  बाकी स्कूलों के मुकाबले डिफिकल्टी के लेवल काफ़ी ज़्यादा  थे और साथ ही यहाँ बच्चो को पूरी फ्रीडम दी जाती थी ताकि वो अपना टेलेंट एक्सप्लोर कर सके. 

लेकसाइड स्कूल में बिल गेट्स जैसे और भी लोग थे. यहाँ आकर बिल को बहुत अच्छा लग रहा था क्योंकि उन्हें यहाँ अपने जैसे लोग मिल गए थे जिनके साथ वो इंटरएक्ट कर सकते थे और अपने दिमाग को चेलेंज करने के मौके ढूंढ सकते थे. ये स्कूल बिल की लाइफ का एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. 

क्योंकि यही वो जगह थी जहाँ उन्हें अपना असली पैशन पता चला और वो उन  लोगों  से मिले जो आगे चलकर उनके फ्यूचर प्रोजेक्ट के पार्टनर बनें. 

लेकसाइड स्कूल में बिल पॉल एलन से मिले जो बाद में जाकर माइक्रोसॉफ्ट में उनके बिजनेस पार्टनर बने. इसके अलावा बिल की दोस्ती कई और  लोगों  के साथ भी हुई, जो फ्यूचर में उनकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के पहले एम्प्लोई बनें. यही वो जगह थी जहाँ बिल का पहली बार कंप्यूटर से परिचय हुआ जो बाद में उनका पहला और आखिरी प्यार बना. 

उन दिनों कम्पूटर काफी महंगे हुआ करते थे इसलिए साइडलेक स्कूल वालो के लिए कंप्यूटर खरीदना बस की बात  नहीं  थी, हालांकि उनहोंने एक कंपनी से एक कंप्यूटर टर्मिनल लिंक खरीद लिया था ताकि स्टूडेंट कंप्यूटर सीख सके. इस तरह से उन्हें असल में कंप्यूटर खरीदना भी  नहीं  पड़ा और स्टूडेंट्स को कंप्यूटर सीखने का मौका भी मिल गया. 

यही वो वक्त था जब बिल गेट्स और उनके दोस्तों को पहली बार कंप्यूटर देखने और सीखने का मौका मिला. बस फिर क्या था, वो लोग रात-रात भर बैठकर कंप्यूटर के हर एक पहलू से वाकिफ होने की कोशिश करते. कंप्यूटर का उन्हें ऐसा नशा चढ़ा कि बिल और उनके दोस्तों ने कंप्यूटर पर वो सारे घंटे खर्च कर दिए जो कंपनी ने स्कूल वालो को दिए थे. नतीज़ा ये हुआ कि कंपनी वालो ने स्कूल को लिंक टर्मिनल देना बंद कर दिया. पर जल्दी ही बिल गेट्स को कंप्यूटर सीखने का एक और मौका मिला. 

1968 में सीएटल में एक कंप्यूटर सेंटर corporation बनाया गया और वहां के ओनर का बेटा लेकसाइड स्कूल में पढ़ रहा था जिसकी वजह से स्कूल को दोबारा लिंक टर्मिनल मिल गया. गेट्स और उनके गैंग पूरे पैशन के साथ कंप्यूटर सीखने में जुट गए. हालंकि इसकी वजह से कंप्यटर सेंटर कारपोरेशन को काफी दिक्कत आने लगी क्योंकि सिस्टम बार-बार क्रैश हो रहा था. और सबसे बड़ी बात ये थी कि बिल और उनके इस हैकर गैंग ने कंप्यूटर का सिक्योरिटी सिस्टम तोड़ डाला था. सिर्फ इतना ही नहीं, वो लोग उन फाइल्स में भी छेड़-छाड़ करते थे जो स्कूल स्टूडेंट्स के लोग-इन के समय का रिकॉर्ड रखती थी. कंपनी को उनका ये कारनाम ज़रा भी पसंद  नहीं  आया और उन्होंने बिल और उनके दोस्तों का कई हफ्तों तक कंप्यूटर सीखना बैन कर दिया. 

बिल गेट्स की जिंदगी के ये वो सुनहरे दिन थे जब बिल गेट्स और उनके दोस्तों पर कंप्यूटर सीखने का पैशन था जिसके चक्कर में उनकी क्लास भी मिस हो जाती थी और एसाईनमेंट भी देर से सबमिट होते थे. ये पूरा ग्रुप प्रोग्रामिंग का दीवाना था और उन्हें अपना पैशन मिल गया था. बिल गेट्स और पॉल एलन अपनी कंपूटर स्किल अब असली दुनिया में अप्लाई करने को बैचेन हो रहे थे जिसके लिए उन्होंने 1968 में ” द लेकसाइड प्रोगामर्स ग्रुप” बनाया. 

अपने पहले मौक़े के लिए उन्हें ज्यादा हाथ-पैर  नहीं  मारने पड़े. बदकिस्मती से कंप्यूटर सेंटर corporation काफी प्रोब्लम में चल रहा था क्योंकि उनके साथ ठीक वही चीज़ हो रही थी जिसकी वजह से उन्होंने लेकसाइड प्रोग्रामर्स को बैन किया था. उनका सिस्टम बार-बार क्रैश हो जाता था और कंप्यूटर की सिक्योरिटी भी काफी कमजोर थी. कंपनी इन स्टूडेंट्स को हायर कर लिया और उन्हें सिस्टम में बग्स का पता लगाने को कहा, बदले में कंपनी ने उन्हें वो एक चीज़ दी जिसकी बिल और उनके गैंग को बहुत जरूरत थी, यानी अनलिमिटेड कंप्यटर टाइम! 

कंप्यूटर सेंटर कारपोरेशन की मदद के बदले में लेकसाइड प्रोग्रामर्स के ग्रुप को कंप्यूटर पर अनलिमिटेड टाइम मिला और इसके कारण इस ग्रुप को अपनी स्किलनिखारने का जो मौका मिला उसकी वजह से बाद में उन्हें माइक्रोसॉफ्ट डेवलप करने में काफी मदद मिली. 

फिर जल्द ही उन्हें एक और मौक़ा और ये मौका उन्हें इनफार्मेशन साइंस इंक (Information Science Inc.) ने दिया. वो चाहते थे कि लेकसाइड प्रोग्रामर्स उनके लिए एक पेरोल (payroll) प्रोग्राम लिखे. ये पहला ऐसा मौका था जहाँ इन प्रोग्रामर्स को काम के साथ-साथ पैसे भी मिल रहे थे. हालाँकि आईएसआई के साथ डील करने के लिए ये जरूरी था कि उनकी कंपनी एक लेगिटीमेट यानी मान्यता प्राप्त कंपनी बनना जरूरी था. और तब बिल गेट्स और पॉल एलन ने” ट्राफ़-ओ-डेटा” नाम से अपनी पहली कंपनी खोली. और ये कंपनी बिल गेट्स के कॉलेज जाने तक बनी रही. अपने सॉफ्टवेयर के साथ हर कंप्यूटर के लिए उन्हें पैसे मिल रहे थे, इस बिजनेस वेंचर से उन्होंने करीब $20000 कमाए. 

लेकसाइड में अपने शुरुवात सालो में ही गेट्स को लेकस्कूल ने एक जॉब ऑफर की जहाँ उन्हें स्कूल के लिए एक शेड्यूलिंग सिस्टम बनाना था. गेट्स और पॉल ने अपने ये शुरुवात साल स्कूल के लिए सॉफ्टवेयर डेवलप करने में गुज़ारे. अपने सीनियर सालों में भी वो लोग ऐसे मौको की तलाश में रहते थे जहाँ उनकी स्किल्स भी इम्प्रूव हो सके और साथ में कमाई भी हो जाए. 

जल्दी ही उन्होंने लेकसाइड स्कूल के लिए एक शेड्यूलिंग प्रोग्राम बना लिया. फिर सीनियर सालों में टीआरडब्ल्यू ने उन्हें कांटेक्ट किया क्योंकि ये कंपनी भी कंपूटर सेंटर की तरह ही अपने कंप्यूटर में कुछ इश्यूज फेस कर रही थी. तब पहली बार बिल और पॉल को एक ऑफिशियल ज़िम्मेदारी मिली कि वो सिस्टम में बग्स ढूंढ कर उसे फिक्स करे और इसीलिए बिल और पॉल को पहली बार खुद की एक सॉफ्टवेयर कम्पनी खोलने का आईडिया आया. 

लेकसाइड स्कूल में सीनियरसाल पूरे करते ही बिल को कॉलेज जाने का मौका मिला. उन्होंने अपने SAT में 1590 का स्कोर किया था जोकि एक परफेक्ट स्कोर माना जाता था. उनकी जिंदगी का एक नया पन्ना खुलने जा रहा था, उन्होंने हार्वर्ड जाने की तैयारी शुरू कर दी. 

गेट्स को तब तक कोई आईडिया नहीं था कि वो हार्वर्ड जाकर क्या पढ़ेंगे पर उन्हें अपने जैसे  लोगों  की कंपनी पसंद थी. अभी उन्होंने कुछ तय  नहीं  किया कि वो क्या सब्जेक्ट लेंगे इसलिए उन्होंने प्री लॉ में एडमिशन ले लिया. हार्वर्ड के अपने फर्स्ट ईयर में उन्होंने बेसिक कोर्स लिए थे, सिवाए मैथ्स  प्रोग्राम के. उन्होंने एडवांस्ड  मैथ्स प्रोग्राम चूज़ किया क्योंकि गेट्स  मैथ्स में  जीनियस थे. 

जैसा कि ज़ाहिर था, हार्वर्ड में भी बिल की काफी बढ़िया परफोर्मेंस रही. पर वो खुश  नहीं  थे, कहीं ना कहीं उन्हें हमेशा यही महसूस होता था जैसे कोई कमी है. जैसे वो कुछ मिस कर रहे है. फिर एक दिन उन्होंने हार्वर्ड का कंप्यूटर रूम देखा, उन्हें ऐसा लगा जैसे उन्हें अपना बरसों का खोया खज़ाना मिल गया हो, वो अपने सामने दोबारा  कंप्यूटर देखकर एकदम पैश्नेट हो गए थे. 

इस दौरान बिल गेट्स और पॉल एलन हमेशा एक दुसरे के टच में रहे और अपने फ्यूचर प्लान्स की बाते किया करते थे, दोनों मिलकर एक दिन एक कंपनी खोलना चाहते थे. कॉलेज के फर्स्ट ईयर में दोनों ने तय किया कि एलन अब उनके कहीं आस-पास ही रहेंगे ताकि दोनों मिलकर अपने फ्यूचर प्लान पर चर्चा कर सके. पॉल एलन तब वाशिंगटन यूनीवरसिटी कॉलेज ड्राप आउट थे. एलन गेट्स के पास बोस्टन चले आये. उन्ही दिनों गर्मियों की बात थी, दोनों को हनीवेल में जॉब मिली. अब एलन ने गेट्स को खुद की सॉफ्टवेयर कंपनी स्टार्ट करने के लिए जोर देना शुरू कर दिया था. 

पर गेट्स को कॉलेज जाना और कॉलेज लाइफ पंसद थी और वो अपनी पढाई बीच में  नहीं  छोड़ना चाहते थे. उन्हें अपने जैसे  लोगों  के साथ वक्त बिताना और पढाई करना पसंद था. कुल मिलाकर बिल अभी कॉलेज छोड़ने के मूड में  नहीं  थे. लेकिन उन्हें  नहीं  पता था कि जल्द ही उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ आने वाला है. 

वो एक आम सा दिन था, पर कुछ ऐसा हुआ था जिसने पॉल एलन को बेहद एक्साईटेड कर दिया था. वो सीधा बिल गेट्स के होस्टल की तरफ भागा, उसके हाथ में एक पोपुलर इलेक्ट्रोनिक्स  मैगज़ीन की कॉपी थी जिसके कवर पर  Altair की फोटो छपी थी, नीचे कैप्शन लिखा था “World’s First Microcomputer Kit to Rival Commercial Models”. बिल और पॉल के लिए ये खबर बेहद सनसनीखेज थी. 

दोनों समझ गए थे कि ऐसा मौका बार-बार हाथ  नहीं  आता. उन्हें पता था, मार्किट में इस तरह के कंप्यूटर्स की बाढ़ आने वाली है जिनके लिए सॉफ्टवेयर की जरूरत पड़ेगी. ये उनके लिए एक सुनहरा अवसर था. उन्होंने एम्आईटीएस को जोकि  Altair 8080 बना रही थी, कॉल किया और बताया कि उनके पास बेसिक नाम से एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है जो  Altair 8080 पर काम कर सकता है. उनकी  बातों  से  MITS  काफी इंट्रेस्टेड लगी और दोनों लड़कों को एक मौका देने को तैयार हो गई. 

दरअसल गेट्स और पॉल ने सफेद झूठ बोला था. उनके पास कोई सॉफ्टवेयर रेडी नहीं था, कोडिंग का एक वर्ड भी नहीं. उनके पास सिर्फ के मौका था जहाँ उन्हें खुद को प्रूव करना था. दोनों दिन-रात मेहनत करके एक ऐसा बेसिक प्रोग्राम बनाने में जुट गए जिसे वो  MITS  को प्रेजेंट कर सके. 

कोडिंग का काम बिल ने संभाला जबकि पॉल एक सिमुलेशन पर काम कर रहे थे ताकि उनका कोड  Altair पर काम कर सके.  Altair पर काम करना तो दूर दोनों ने  Altair पहले कभी देखा तक  नहीं  था. एलन स्कूल कंप्यूटर्स पर काम कर चुके थे. वो आज पहली बार  Altair पर सिमुलेशन चलाने जा रहे थे जो उन्हें  MITS  के आगे चलाकर दिखाना था. 

कोड को तैयार होने में दस हफ्ते लगे. MITS  को प्रेजेंटेशन देने के लिए एलन एयर ट्रेवल करके आये. कई सारी चीज़े थी जो गलत हो सकती थी, जैसे कि अगर कोड में फाल्ट निकला तो, अगर प्रेंजेटेशन फेल हुई तो, अगर सिमुलेशन पर  Altair के साथ compatible नहीं हुई तो, ऐसे कई डर उन एलन और गेट्स के माइंड में थे. लेकिन उनका ये सॉफ्टवेयर बहुत सक्सेसफुल रहा! हर चीज़ उनकी प्लानिंग के हिसाब से रही और  MITS  ने बेसिक सॉफ्टवेयर के राईट्स खरीदने की ईच्छा जाहिर की. 

यही वो पल था जब गेट्स को एहसास हुआ कि सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में एक बड़ा भूचाल आने वाला है. वक्त की अहमियत और दुनिया की जरूरतों को समझते हुए गेट्स ने एलन के नक्शे-कदम पर चलते हुए कॉलेज की पढाई बीच में छोड़ने का फैसला कर लिया, और इस तरह माइक्रोसॉफ्ट की शुरुवात हुई. 

बिल गेट्स ने जब कॉलेज छोड़ने का फैसला लिया तो उनके पेरेंट्स बड़े परेशान हुए ,उनकी दिली ईच्छा थी कि बिल लॉ की पढ़ाई पूरी करके अपने पिता की तरह एक लॉयर बने. लेकिन बिल के पक्के ईरादे देखकर उन्होंने उसे अपने सपने पूरे करने की मंजूरी दे दी. बाद में बिल गेट्स ने कई बार इस बात का जिक्र किया कि उन्हें कॉलेज लाइफ पसंद थी और वो किसी को भी पढाई बीच में छोड़ने की सलाह  नहीं  देंगे लेकिन उन्होंने ये मजबूरी में किया क्योंकि ये उस वक्त के हिसाब से लिया गया एक बेहतरीन फैसला था. 

माइक्रोसॉफ्ट को अपना पहला असली ब्रेक तब मिला जब  IBM  ने उन्हें अपनी मशीन के लिए एक सॉफ्टवेयर डेवलप करने के लिए अप्रोच किया. इससे पहले माइक्रोसॉफ्ट एक छोटी सी कंपनी थी पर इस ब्रेक के बाद उनके साथ कई बड़ी-बड़ी चीज़े होनी शुरू हो गई. उन्होंने  IBM  के लिए  MS-DOS डिजाईन किया. यही वो वक्त था जब उनके एक सफल बिजनेसमेन होने की झलक मिलनी शुरू हो गई थी.  MS-DOS का सारा सॉफ्टवेयर बेचने और उन्हें सॉफ्टवेयर की ओनरशिप देने के बजाए, माइक्रोसॉफ्ट ने उन्हें ये सॉफ्टवेयर यूज़ करने का लाइसेंस  दे दिया और इस तरह सॉफ्टवेयर की ओनरशिप अपने पास ही रखी. आईबीएम् के हर कंप्यूटर की सेल पर माइक्रोसॉफ्ट को अपने सॉफ्टवेयर का कमिशन मिला जो आईबीएम् के कंप्यूटर्स पर इंस्टाल किया गया था.

बिल का ये ब्रिलिएंट आईडिया बाद में काफी काम का साबित हुआ जब 80 के दौर में सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में एक बड़ा उछाल आया. उन्होंने  IBM  के कॉम्पटीटर्स को भी  MS-DOS यूज़ करने का लाइसेंस दे दिया. ये एक ऐसी डील थी जिसने इतनी कम उम्र में ही बिल गेट्स की किस्मत चमका दी थी. 

माइक्रोसॉफ्ट अभी सफलता की उंचाईयों पर पहुँच ही थी कि एक दुखद घटना घटी, पॉल एलन को होज़किन यानी ब्लड कैंसर की बिमारी हो गई थी. वो बहुत बीमार पड़ गए थे, माइक्रोसॉफ्ट की पूरी जिम्मेदारी अब बिल गेट्स पर थी. अब वो ही कंपनी के इकलौते रीप्रेंजेटेटिव थे. लेकिन कोई भी मुसीबत बिल को अपने सपने पूरा करने से  नहीं  रोक सकती थी, वो मेहनत से लगातार अपना काम करते रहे. 

1985 में उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट विंडोज़ का फर्स्ट एडिशन launch  किया. ये वो फाउंडेशन थी जिस पर अगले बीस सालो तक पर्सनल कंप्यूटर चलते रहे. माइक्रोसॉफ्ट के लिए ये बेहद अहम अचीवमेंट थी, इसके बाद बिल गेट्स ने डिसाइड किया कि वो माइक्रोसॉफ्ट पब्लिक बनायेंगे. 1986 में अगले साल माइक्रोसॉफ्ट का एक शेयर $21 के करीब पहुंच गया. बिल के पास माइक्रोसॉफ्ट के 45% शेयर थे और बाकि बेचे जा चुके थे. इससे उन्हें पहले मिलियन डॉलर की कमाई हुई. 

हालाँकि अपनी दौलत का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने अपने 45% से कमाया. माइक्रोसॉफ्ट का पब्लिक होना काफी सराहा गया, 1986 में बिल गेट्स की नेट वर्थ थी 350 मिलियन डॉलर्स. और अगले साल सिर्फ 31 साल की उम्र में वो दुनिया में सबसे कम उम्र के बिलेनियर बन गए थे. और आने वाले आठ सालो में यानी 39 की उम्र में” दुनिया के सबसे अमीर आदमी” का टाईटल उनके नाम हो गया था. 

वो 2000 तक कंपनी के सीईओ के तौर पर बने रहे. हालाँकि फिर उन्होंने अपनी पोजीशन छोड़ने का फैसला कर लिया, उनके बाद स्टीव बाळमर सीईओ बने जो हार्वर्ड में उनके रूममेट थे. बिल चीफ सॉफ्टवेयर आर्किटेक्ट के तौर पर काम करते रहे. 

हालाँकि आने वाले छेह सालो में बिल को एहसास हुआ कि अब कुछ अलग चीजों पर फोकस किया जाए, उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें सोसाईटी लौटाना चाहिए जो उन्हें मिला था. बिल ने अब सोशल वर्क से जुड़े वेंचर्स पर ज्यादा फोकस करना शुरू किया, और इस तरह 2000 में बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की शुरुवात हुई, ठीक उसी वक्त जब बिल गेट्स माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ की पोस्ट छोड़ रहे थे. 

2008 के आते –आते बिल गेट्स की माइक्रोसॉफ्ट में फुल टाइम के बजाए पार्ट-टाइम इन्वोल्वमेंट होने लगी थी. वो और उनकी वाइफ लगातार अपने प्रयासों से इस दुनिया को और भी बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहे थे. उनकी फाउंडेशन गरीबो, बीमारों और बेसहारा  लोगों  की मदद के लिए काम करती थी. बिल और मेलिंडा अमेरिका के प्रति अपना फ़र्ज़ समझते हुए देश के एजुकेशन सिस्टम की बेहतरी के लिए भी कोशिश कर रहे थे और अपना योगदान  दे रहे थे. बिल गेट्स ने अपनी पर्सनल कमाई का काफी बड़ा हिस्सा सोशल वर्क पर खर्च किया है. 

2014 में सत्य नडेला को चीफ एक्जीक्यूटिव बनाकर बिल गेट्स ने डिसाइड किया कि वो अब चेयरमेन की पोस्ट और माइक्रोसॉफ्ट में अपना एक्टिव रोल दोनों छोड़ देंगे. हालाँकि माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर और टेक्नोलोजी एडवाईजर” के तौर पर उनकी पोजीशन हमेशा बरकरार रहेगी. 

तब से लेकर आज तक बिल गेट्स अपने बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के जरिये समाज के जरूरतमंद  लोगों  की मदद करते आ रहे है जोकि पूरी दुनिया में सबसे बड़ा चैरीटेबल ओर्गेनाईजेशन ट्रस्ट है. 

आज भी जब दुनिया एक बड़ी महामारी और लॉक डाउन से जूझ रही है, बिल गेट्स की फाउंडेशन दुनिया भर में जरूरतमंदों की मदद के लिए प्रयास कर रही है. बिल गेट्स ने अपने काम से दिखा दिया है कि वो दुनिया के सबसे अमीर ही नहीं बल्कि सबसे दिलदार आदमी भी है. 

वो चाहते तो अपनी सारी कमाई सिर्फ अपने परिवार और अपने लिए रख सकते थे, उन्हें कोई कुछ  नहीं  बोल सकता था, आखिर वो अपने पैसे का जो चाहे करे. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने  लोगों  का दुःख अपना दुःख समझते हुए उनकी भलाई का बीड़ा उठाया. उन्होंने ना सिर्फ ढेर सारा पैसा कमाया बल्कि गरीबो और समाज के पिछड़े वर्ग को सहारा देकर अपनी जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई है. 

तो ये थी दुनिया के सबसे मशहूर और सक्सेसफुल इनोवेटर और टेक्नोलोजिकल संत की कहानी जिनके अंदर बिजनेस करने का हुनर भी था. ऐसे  इंसान  बड़े मुश्किल से मिलते है जिनके अंदर इतने गुण, इतनी अच्छाईयां हो. लेकिन अगर बात सर्वगुण संपन्न होने की है तो बिल गेट्स इसका एक बेहतरीन उदाहरण है. वो बेहद बुद्धिमान और मैथ्स के जीनियस थे. उनके अंदर बिजनेस करने की काबिलियत मौजूद थी. और साथ ही उनके अंदर अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत करने का भी ज़ज्बा था. 

उनके शुरुवात दिनों के स्ट्रगल, रात-रात भर जागकर मेहनत करना और कोडिंग पर फोकस, इन सब चीजों ने उनके विशाल फ्यूचर एम्पायर की नींव रखी थी. और सबसे बड़ी बात तो ये कि उनके अंदर सही वक्त पर सही फैसला लेने की समझ थी, और जहाँ जरूरत होती वो रिस्क लेने से भी नहीं डरते थे. और वो ये भी जानते थे कि कहाँ अपने कदम पीछे खींचने है और कंपनी की भलाई के लिए कभी-कभी  दूसरों  को भी मौका देना चाहिए. 

सबसे बड़ी बात तो ये थी कि सफलता की इन उंचाईयों पर पहुँचने के बावजूद वो जमीन से जुड़े रहे और अपनी इंसानियत  नहीं  भूले. उन्होंने बिना लालच के, या किसी निजी स्वार्थ के  लोगों  की भलाई की क्योंकि वो जानते है कि पैसा ही सब कुछ  नहीं  होता.

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