The Intelligent Investor By Benjamin Graham Hindi Summary

The Intelligent Investor By Benjamin Graham Hindi Summary

---------- About Book ----------

एक इंटेलीजेंट इन्वेस्टर वो होता है जिसमे डिसप्लीन हो, पेशंस हो और जिसके अंदर लर्निंग का पैशन हो. यानी कि आपको अपने इमोशंस पर कण्ट्रोल करना आता हो और आपके अंदर इंडीपेंडेटली सोचने की एबिलिटी हो..

ये बुक किस किसको पढनी चाहिए?

जो लोग स्टॉक मार्किट में पैसा लगाते है और हाई प्रॉफिट कमाना चाहते है उन्हें ये बुक ज़रूर पढनी चाहिए. ये बुक आपको इंटेलीजेंट इन्वेस्टर और नॉर्मल इन्वेस्टर के बीच का फर्क बड़े अच्छे से समझाती है.इस बुक में दिए टिप्स और आईडियाज हर न्यू या ओल्ड स्टॉक मार्केटर के लिए बड़े काम के है. 

इस बुक के ऑथर कौन है ?

इस बुक के ऑथर बेंजामिन एक ब्रिटिश बोर्न अमेरिकन इन्वेस्टर, इकोनोमिस्ट और प्रोफ़ेसर थे. उन्हें फादर ऑफ़ द वैल्यू इन्वेस्टिंग के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने नियोक्लासिक इन्वेस्टिंग में दो फाउन्डिंग बुक्स लिखी है. एक डेविड दोद के साथ मिलकर सिक्योरिटी ऐनालिसिस और दूसरी हाइली पोपुलर” इंटेलीजेंट इन्वेस्टर”.

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The Intelligent Investor By Benjamin Graham

परिचय इंट्रोडक्शन (Introduction)

इंटेलीजेंट इन्वेस्टर्स का मतलब क्या है? क्या हाई रिटर्न्स के लिए आपके अंदर हाई आईक्यू होना चाहिए? जी नहीं बेंजामिन ग्राहम ऐसा बिलकुल नहीं मानते. एक इंटेलीजेंट इन्वेस्टर वो होता है जिसमे डिसप्लीन हो, पेशंस हो और जिसके अंदर लर्निंग का पैशन हो. यानी कि आपको अपने इमोशंस पर कण्ट्रोल करना आता हो और आपके अंदर इंडीपेंडेटली सोचने की एबिलिटी हो. ग्राहम का मानना है कि इंसान के अंदर इस टाइप की इंटेलीजेन्स उसके ब्रेन से ज्यादा केरेक्टर पर फोकस करती है. 

क्या आपको पता है सर आइजेक न्यूटन ने एक बार स्टॉक्स में पैसे इन्वेस्ट किये थे? उस टाइम पर साउथ सी कंपनी के स्टॉक्स यू.के. में सबसे ज्यादा डिमांड में थे. न्यूटन को लगा कि स्टॉक मार्किट में पेनिक फैला हुआ है इसीलिए उन्होंने अपने सारे स्टॉक बेच दिए. और उन्हें 7000यूरो का 100% प्रॉफिट हुआ था. हालाँकि कुछ मंथ्स बाद ही न्यूटन ने भी लोगो के इन्फ्लुयेंश में आकर साउथ सी कंपनी में दुबारा इन्वेस्ट किया और वो भी पहले से ज्यादा अमाउंट.

लेकिन इस बार उन्हें 20,000 यूरो का लोस उठाना पड़ा. बाद में उन्होंने कहा भी कि वो आसमान के सितारों की अच्छी केलकुलेशन कर सकते है लेकिन लोगो के emotions ko nhi samajh sakte. और उन्होंने अपने फ्रेंड्स को कहा कि आज के बाद मेरे सामने “साउथ सी” का नाम भी मत लेना. तो क्या न्यूटन पेशेंट, डिसप्लीन्ड और सीखने के उत्सुक थे? बेशक वो (Physics) फिजिक्स्त के जीनियस थे लेकिन इन्वेस्टमेंट में उनकी नॉलेज उतनी भी कमाल की नहीं थी. उनका खुद के इमोशंस पर कण्ट्रोल नही था इसलिए उन्होंने दूसरो की बातो में आकर अपना नुकसान करवा लिया था. न्यूटन एक इंटेलीजेंट साइंटिस्ट तो थे लेकिन इंटेलीजेंट इन्वेस्टर नहीं थे.

स्टॉक ट्रेडिंग की दुनिया पहले मेडीएवल गिल्ड (medieval guild) की तरह होती थी जब लोग गेसवर्क और सुपरस्टीशंस पर (guesswork and superstition) पर ज्यादा भरोसा करते थे.लेकिन बेंजामिन ग्राहम के आने से काफी कुछ चेंजेस आये. अपनी बुक्स के थ्रू उन्होंने इन्वेस्टिंग में इस तरह क्लेरिएटी और स्ट्रक्चर सेट करी कि ये एक मॉडर्न प्रोफेशन बन गया. अब सवाल ये आता है कि बेंजामिन ग्राहम कैसे इन्वेस्टमेंट के फील्ड में एक itna bada naam bane|कैसे उन्होंने स्टॉक मार्किट में इतनी नॉलेज अचीव की? बेंजामिन ग्राहम 1894 में लंदन की एक रिच फेमिली में पैदा हुए थे. उनके फादर चाइनीज पोर्सिलेन के डीलर थे. बेंजामिन जब एक साल के हुए तो उनकी फेमिली न्यू यॉर्क शिफ्ट हो गयी. 

उनकी फेमिली न्यू यॉर्क के Fifth एवेन्यू में रहती थी. उनके पास एक बहुत बड़ा घर था जिसमे कई सारे सर्वेन्ट्स थे. फिर कुछ सालो बाद ही बेंजामिन के फादर की डेथ हो गयी. पोर्सिलेन का फेमिली बिजनेस घाटे में चलने लगा और वो लोग गरीब हो गए. बेंजामिन की मदर ने घर में कुछ किराएदार रख लिए और साथ ही कुछ पैसा स्टॉक में भी इन्वेस्ट कर दिया. लेकिन बदकिस्मती से स्टॉक मार्किट क्रेश हुआ तो उनका सारा पैसा डूब गया.

बेंजामिन को एक बार बड़ी एम्बेरेशमेंट फील करनी पड़ी जब वो अपनी मदर का दिया चेक कैश करने बैंक में गए. बैंक ke employee ने उनसे कहा कि क्या उनकी मां के अकाउंट में $5 भी है? और यही वो मोमेंट था जिसने उन्हें हार्ड वर्क करके अपनी सिचुएशन इम्प्रूव करने के लिए मोटीवेट किया. बड़े होकर उन्होंने कॉलेज की स्कोलरशिप ली. बेंजामिन ने अपनी क्लास में टॉप किया था. उस टाइम वो सिर्फ 20 साल के थे लेकिन उन्हें तीन डिफरेंट डिपार्टमेंट से टीचिंग का ऑफर मिल रहा था.

लेकिन बेंजामिन को मना करना पड़ा. उस वक्त उनका पूरा फोकस सिर्फ वाल स्ट्रीट पर था. उन्होंने एक क्लर्क की जॉब से अपने फाइनेशियल करियर की शुरुवात की. बाद में वो ऐनालिस्ट बने और उसके बाद पार्टनर. फिर जल्दी ही बेंजामिन ने अपनी खुद की इन्वेस्टमेंट कंपनी खोल ली जिसका नाम था ग्राहम-न्यूमेन कोर्प. 20 सालो तक उनकी इन्वेस्टमेंट फर्म सालाना का 14.7% रिटर्न्स कमाती रही.

साल 1929 से 1932 तक ग्रेट क्रेश रहा लेकिन ग्राहम की कंपनी ने ये क्रेश ना सिर्फ सर्वाइव किया बल्कि उसके बाद और भी ज्यादा प्रॉफिट कमाया. उनकी फर्म वाल स्ट्रीट की सबसे सक्सेसफुल फर्म थी. लेकिन ये सब उन्होंने किया कैसे? कैसे ग्राहम ने इतना लंबा और सक्सेसफुल इन्वेस्टमेंट करियर मेंटेन किया? इस बुक में आपको ऐसे ही कुछ प्रेक्टिकल टिप्स पढने को मिलेंगे जो आपको एक इंटेलीजेंट इन्वेस्टर बनने में हेल्प करेंगे.

आप सीखेंगे कि कैसे रिस्क को मिनीमाइज करके आप स्मार्टली अपने स्टॉक चूज़ कर सकते हो. इंटेलीजेंट इन्वेस्टर नाक की ये बुक फर्स्ट टाइम 1973 में पब्लिश हुई थी. लेकिन बेंजामिन की टीचिंग इतनी एशेंशिय्ल और इनसाईटफुल है कि आज के टाइम में पूरी तरह से रेलीवेंट है. बिजनेस मेग्नेट वारेन बफे (Warren Buffet) कहते है कि इंटेलीजेंट इन्वेस्टमेंट इन्वेस्टमेंट पर लिखी गयी अब तक की बेस्ट बुक है. 

 इन्वेस्टमेंट वेर्सुस स्पेक्यूलेशन (Investment versus Speculation)

क्या आपको पता है दिन खत्म होने पर जब बेल बजती है तो न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के ब्रोकर्स खुश हो जाते है? वो इसलिए कि चाहे आपको लोस हुआ या प्रॉफिट लेकिन उन्होंने तो अपने पैसे कमा लिए. आपको एक इन्वेस्टर और एक स्पेक्यूलेटर के बीच का फिर्क पता होना चाहिए. स्टॉक मार्किट में बहुत से स्पेक्यूलेटर्स होते है. लेकिन आप ये मिस्टेक मत करना. स्पेक्यूलेटर्स गैम्बेर्स yaani jue baazo की तरह होते है जैसे गैम्बेर्स हाई रिस्क पर काफी सारा पैसा लगा लेते है तो कभी-कभी उनको बाई चांस प्रॉफिट भी हो जाता है लेकिन ज्यादातर उनको लोस ही होता है.

लेकिन वो जीते या हारे सबसे ज्यादा फायदा तो कैसिनो को होता है. तो आप ये कैसे श्योर करोगे कि आप इन्वेस्ट कर रहे हो या सिर्फ स्पेक्यूलेशन लगा रहे हो? सबसे पहले तो जब आप किसी कंपनी को स्टडी करते हो, तो स्टोक लेने से पहले उस कंपनी की कमी या खूबियों के बारे में पता कर लो. दूसरी चीज़, हाई रिस्क अवॉयड करो. और थर्ड,adequate रिटर्न्स एक्स्पेक्ट करो ना कि ओवरली हाई रिटर्न्स. 

अगर आप ये तीन रूल्स माइंड में रखोगे तो इन्वेस्टमेंट में लोस अवॉयड कर सकते हो. तब आप खुद के लिए पैसा अर्न करोगे ना कि ब्रोकर के लिए.  स्पेक्यूलेटर्स रोंग डिसीजन लेते है. जबकि इन्वेस्टर्स हमेशा केयरफुल रहते है. इसीलिए उनकी सक्सेस भी लॉन्ग टर्म तक सस्टेन रह पाती है. ग्राहम की गाइडलाइन्स फोलो करके आप भी अपनी सक्सेस लॉन्ग टर्म के लिए सिक्योर कर सकते है. आजकल ज्यादा से ज्यादा लोग ऑनलाइन और डे ट्रेडिंग में इंटरेस्ट ले रहे है. लोगो को ये किसी फाइनेशियल वीडियो गेम प्ले करने जैसा ही thrilling (थिलिंग) लगता है. 

बार में, रेस्त्रोरेंट्स मे, या कैफेटेरिया, आजकर हर जगह से लोगो को इन्फोर्मेशन मिलती है. आजकल टीवी और इंटरनेट में फाईनेंशिय्ल एडवरटीज़मेंट से रिलेटेड हर इन्फोर्मेंशन अवलेबल है. लेकिन असल में देखा जाए तो प्रोब्लम की जड़ भी यही है. लोग मिसइन्फॉर्म हो रहे है. हर जगह से उन्हें इतनी इन्फोर्मेशन मिल रही है कि वो कन्फ्यूज़ हो रहे है. उनके पास प्लेंटी ऑफ़ इन्फोर्मेशन तो है लेकिन इंटेलीजेंट इन्फोर्मेंशन की कमी है. लोग सिर्फ टीवी स्क्रीन में स्टॉकस के नम्बर पढ़ते है और इनमे से ज्यादातर लोग स्पेक्यूलेटर्स ही होते है.

वो जिस कंपनी में पैसा इन्वेस्ट कर रहे उसके बारे में उनके पास जीरो नॉलेज होती है. और उन्हें इस बात से कोई फर्क भी नहीं पड़ता. उन्हें तो बस टिकर सिंबल से मतलब है ताकि वो स्टॉक्स ले सके. 1998, मेंएक छोटी सी बिल्डिंग मेंटेनेस कंपनी के स्टॉक प्राइस देखते ही देखते ट्रिपल हो गए थे. कंपनी का नाम था टेम्को सर्विसेस. दरअसल हुआ ये कि लोग इसके टिकर सिंबल से कन्फ्यूज़ हो गए थे, उन्होंने टीएमसीओ को टीएमसीएस समझ लिया था जो किसी दूसरी कंपनी का टिकर सिम्बल था. टिकेट मास्टर ऑनलाइन एक पोपुलर वेबसाईट है जिसका खुद का आईपीओ था. और लोगो ने टेम्को सर्विसेस को टिकेट मास्टर ऑनलाइन कंपनी समझ कर स्टॉक लेने शुरू कर दिए थे. 

किसी ने भी ये नहीं सोचा कि 2 मिनट उस कंपनी की जांच पड़ताल कर ली जाए जिसमे वो अपना पैसा इन्वेस्ट कर रहे है. अगर आप डेली स्टॉक प्राइस चेक नहीं करेंगे तो क्या आपको सही लगेगा? ग्राहम के हिसाब से कोई भी स्मार्ट इन्वेस्टर ऐसा बिलकुल नहीं करेगा. आपको हमेशा लॉन्ग टर्म के बारे में सोचना चाहिए, और स्टॉक के डेली फ्लक्चुएशन के बजाये कंपनी की वैल्यू देखो. क्योंकि तभी आप दूसरो के इन्फ्लुएंश में आने से खुद को बचा पाओगे.

एक बार सीआईबीसी में एक ऐसा ही ऐनालिस्ट था जिसने kaha ki अमेज़न.कॉम का प्राइस टारगेट $150 से $400 badh jayega. रिजल्ट ये हुआ कि अमेज़न के स्टॉक्स  14% बढ़ गए. ये बात 1998 की है. hua ye ki logo on is statement ko itna serious le liya ki अमेज़न के स्टॉक्स लगातार बढ़ते चले गए और कुछ वीक्स बाद ye $400 se bhi zaada badh gaye. 

 अ सेंचुरी ऑफ़ स्टॉक मार्किट हिस्ट्री (A Century of Stock-Market History)

1990 में स्टॉक मार्किट ke experts ne bhavishyavaani kari कि 1802 से स्टॉक्स में हर साल 7% का रिटर्न्स है. इसका मतलब tha कि 1990 में इन्वेस्टर्स एट लीस्ट 7% रीटर्न expect kar sakte थे. pehle फॉरकास्टर्स की फ्यूचर प्रेडिक्शन इस बेस पर होती थी क्योंकि उन्हें पास्ट पर पूरा ट्रस्ट था. हालाँकि ग्राहम के हिसाब से ये चीज़ लोजिक और रीजन के परे है.

क्योंकि ऑथर ने हमेशा ही प्रेक्टिकेलिटी और कॉमन सेन्स को प्रायोरिटी दी है. वो आर्ग्यू करते है कि स्टॉक मार्किट का पास्ट बिहेवियर फ्यूचर में काम नहीं आ सकता. इन्फेक्ट कई बार फॉरकास्टर्स से टेरिबल मिस्टेक्स हुई है. केविन लेंडीस, फर्स्टहैण्ड म्यूचुअल फंड्स के एक मैनेजर the, उन्होंने 1999 में सीएनएन के लिए एक इंटरव्यू दिया था. उनसे पुछा गया था कि क्या वायरलेस टेलीकम्यूनिकेशन के स्टॉक्स ओवर वैल्यू किये जा रहे है ? इस पर लेंडीस का कहना था” बिलकुल नहीं, इंडस्ट्री ग्रो कर रही है और आने वाले सालो में और ज्यादा करती रहेगी isiliye iska price ek dam theek hai. रोबर्ट फरोएलीच (Robert Froelich,) केम्पर फंड्स के एक स्ट्रेजिस्ट the, 2000 के वाल स्ट्रीट जर्नल में उनका इंटरव्यू था.

उनका मानना tha कि लोगो को हाई स्टॉक प्राइस वाली कंपनीज में इन्वेस्ट करने से डरना नहीं चाहिए. फरोएलीच (Froelich) के अनुसार ये कंपनीज राईट लोगो और राइट विजन के साथ चलती है. इसलिए इन पर बेफिक्र होकर इन्वेस्टमेंट किया जा सकता है. जेफरी एप्पलगेट (Jeffrey Applegate) लेहमेन ब्रदर्स में एक स्ट्रेटेजिस्ट the जिनके बारे में बिजनेस वीक 2000 में आर्टिकल पब्लिश हुआ था. वो कहते है कि स्टॉक प्राइस हाई होने का ये मतलब नहीं है कि इन्वेस्टिंग में रिस्क है.

लेकिन सच तो ये है कि ये वाकई में रिस्की होता है. स्टॉक मार्किट में इन्वेस्टिंग करना हमेशा से ही रिस्की रहा है चाहे पास्ट की बात हो या प्रजेंट की और ये फ्यूचर में भी रिस्की रहेगा. इन तीनो फॉरकास्टर्स ने गारंटी के साथ कहा था कि 1990 के लास्ट में हाई रिटर्न्स मिलेगा लेकिन स्टॉक मार्किट क्रेश हुआ और इनकी प्रेडिस्कशन रोंग प्रूव हुई. लेंडीस को नोकिया में 67% स्टॉक का लोस हुआ विनस्टार कम्यूनिकेशन में 99% का. फरोएलीच (Froelich) को सिस्को और मोटोरोला me दोनों जगह 70% का लोस हुआ.

टोटल मिलाकर सिस्को इन्वेस्टर्स को $400 बिलियन का लोस हुआ. 2000 में जब एप्पलगेट ने अज्यूम किया था तब डो जोंस इंडेक्स 11,000 के करीब था जबकि (NASDAQ )एनएएसडीएक्यू 4,400 पर था. हालाँकि दो साल बाद सिचुएशन कम्प्लीटली चेंज हो गयी थी. डो जोंस 8,000 पर चला गया और एनएएसडीएक्यू (NASDAQ) गिरकर 1300 पर पहुचं गया था. यहाँ हमको ये लेसन मिलता है कि आप रिटर्न्स पर जितना हाई अज्यूम करोगे, उतना ही नीचे गिरोगे. लेकिन इंटेलीजेंट इन्वेस्टर हाई प्राइस स्टॉक्स पर इन्वेस्ट नहीं करेगा फॉरकास्टर चाहे कुछ भी बोले. कंपनीज की प्रॉफिट कमाने की भी एक लिमिट होती है. और इसीलिए इन्वेस्टर्स को भी पैसे इन्वेस्ट करने की एक लिमिट रखनी चाहिए. 

हम बोल सकते है कि हाई प्राइस स्टॉक्स आल टाइम बास्केटबॉल सुपर स्टार माइकल जोर्डन जैसे है जब शिकागो बुल्स ने उसे टीम में रखा तो टीम को कई सारे एडमाईर्स और सपोर्टर्स मिल गए थे. शिकागो बुल्स माइकल जोर्डन को टीम में खेलने के लिए हर साल $34 मिलियन पे कर रहा था. माइकल जोर्डन चाहे कितना भी ग्रेट प्लेयर क्यों ना हो, बुल्स का उसे हर साल $340 या $3.4 बिलियन या फिर $34 बिलियन देने का कोई तुक नहीं बनता है. ये बहुत बड़ी बेवकूफी है. इसी तरह इन्वेस्टर्स को भी पैसा सोच समझ कर इन्वेस्ट करना चाहिए. याद रहे, पास्ट कभी भी स्टॉक मार्किट का फ्यूचर प्रेडीक्ट नहीं कर सकता और जो रिटर्न्स आपको मिलते है उसकी भी लिमिट होती है. 

ग्राहम इन्वेस्टिंग का एक सिम्पल रुल बताते है. “बाई लो एंड सेल हाई”  यानी कम में खरीदो और ज्यादा में बेचो”. लेकिन प्रोब्लम तो ये है कि ज्यादतर लोग इसके एकदम अपोजिट चलते है और हाई प्राइस में खरीदकर उसे लो प्राइस में बेच देते है. नेस्क्ट टाइम आप जब किसी एक्सपर्ट को कोई एड्वाइज़ देते हुए सुनो तो रुल ऑफ़ अपोजिट याद रखना. जितना ज्यादा कोई इन्वेस्टर लॉन्ग टर्म के लिए ऑप्टीमिस्टिक रहता है उतना ही वो शोर्ट टर्म में रोंग प्रूव होता है. 

जेर्नल पोर्टफोलियो पोलिसी (General Portfolio Policy)

इंटेलीजेंट इन्वेस्टर बनने के लिए ham दो तरीके से अप्रोच कर सकते है. फर्स्ट है एक्टिव अप्रोच. अगर आप किसी स्पोर्ट्स फेन की तरह है तो ये तरीका आपके लिए एकदम राईट है. एक्टिव इन्वेस्टिंग का मतलब है कि ham हमेशा अलर्ट rahte hai, market ko स्टडी karte rehtehai और अपने सेट ऑफ़ स्टॉक्स और बांड्स को केयरफूली सेलेक्ट karte hai. सेकंड है पैसिव अप्रोच. अगर आप थोड़े लेज़ी टाइप और रिलेक्स रहने वाले लोगो में से है तो ये मेथड अप्लाई करे.

पैसिव इन्वेस्टिंग का मतलब है ki ham परमानेंट इन्वेस्टमेंट्स karenge jaha par hame baar-baar market ki activities ko trace na karna padhe. ये दोनों ही अप्रोच इंटेलीजेंट है. इसके पीछे आईडिया यही है कि आप इनमे से अपने लिए राईट अप्रोच चूज़ करे. क्या आपको एक्साईटमेंट पसंद है या आप रिलेक्स बैठना पसंद करते है? इस स्टेप के बाद आपको डिसाइड करना है कि आप बांड्स पर कितना पैसा लगाना चाहते हो और स्टॉक्स पर कितना. नॉर्मली, बांड्स में रिस्क मिनिमम होता है इसलिए इनका रिटर्न्स भी कम होता है. जबकि स्टॉक्स में हाई रिस्क और हायर रिटर्न्स के चांस होते है. 

Ab mein janta hu ki aap me se kayi logo ko ye nhi pata hoga ki stocks aur bonds aakhir hote kya hai aur puri summary me inka zikr baar baar hai. To aage badhne se pehle ise discuss kar lete hai.. Jab ek nayi company ko grow karne ke liye paiso ki zarurat hoti hai to vo do tareeke se paise raise kar sakti hai ek hai udhaar yaani loans le kar. Dusra hai ki apni company ke shares ko bech kar.

Ab Stocks or bonds ek tarah ke security certificate hai jo aapko milte hai. Maan lijiye ki aapne company ko 10,000 udhaar diye yaani debt diya to aapko ek bond certificate milega jisme likha hoga ki company aapko ek particular time ke baad 20,000 Rs Degi. Vaise hi Stocks certificate aapko milta hai ki aapne us particular company ke kitne shares khareed liye hai.

Ab maan lijiye ki company bankrupt ho jaati hai aur usko bechne ke baad itne paise nhi milte ki sab bond holders aur stock holders ke paise chukaye jaaye. To bankrupcy ke case me paise pehle hamesha bonds holders ko hi milenge. isiliye bonds thode secure hai aur stocks thode risky. Lekin agar company successful ho jaati hai to bonds certificate holders ko sirf utne hi aise milenge jitne ki unke bond certificate me hai lekin Stock holders ko company ke profit ke accordinga paise milenge isiliye stocks me high return bhi hai. 

to aaiye aage badhte hai Benjamin Graham ke aane se pehle कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि लोगो को अपनी एज के हिसाब से इन्वेस्ट करना चाहिए. जैसे यंग लोग ज्यादा रिस्क हैंडल कर सकते है लेकिन ओल्डर लोगो को लोअर रिस्क वाले इन्वेस्टमेंट करने चाहिए. एक्जाम्पल के लिए, एक 28 साल के प्रोफेशनल अपना 72% पैसा स्टॉक मार्किट में लगा सकता है लेकिन एक 81 साल के बुजुर्ग को सिर्फ 19% ही इन्वेस्ट करना चाहिए. लेकिन ग्राहम इस आईडिया को भी nhi maante.

वो बोलते है कि एज मैटर नहीं करती, मैटर करता है कि आप एक इन्वेस्टर के तौर पर कितने इंटेलीजेंट है. ग्राहम एडवाईज देते है कि हर इन्वेस्टर को एटलीस्ट 25% बांड्स में इन्वेस्ट करना चाहिए. ये इन्वेस्टमेंट आपको अनप्रेडिक्टेबल स्टॉक मार्किट से प्रोटेक्ट करेगी. अब इन दो सिनेरियोज पर एक नजर डालते है. मिसेज स्मिथ 85 साल की विडो है. उन्हें मंथली पेंशन मिलती है. उनके कई सारे ग्रेंड चिल्ड्रन है जिन्हें वो अपनी इन्हेरीटेंस देना चाहती है और मिसेज स्मिथ के बैंक में $3 मिलियन भी है.

इसी बीच एक जॉन नाम का बैंक एम्प्लोई है जिसकी एज 25 है. वो शादी करके सैटल होना चाहता है. इसलिए जॉन अपनी शादी और अपने ड्रीम हाउस के लिए पैसा बचा रहा है. अब इन दोनों में से किसे ज्यादा पैसा स्टॉक में इन्वेस्ट करना चाहिए? कौन ज्यादा रिस्क ले सकता है? अगर हम एज के हिसाब से अज्यूम करे तो मिसेज स्मिथ को कम रिस्क लेना चाहिए लेकिन उनके पास जॉन से ज्यादा paise है. ग्राहम सजेस्ट करते है कि सभी इन्वेस्टर्स को ..चाहे vo यंग हो या ओल्ड, किसी भी अनएक्स्पेक्टेड सिचुएशन के लिए प्रीपेयर रहना चाहिए. स्टॉक मार्किट अनप्रेडिक्टेबल है और लाइफ भी. 

क्या आप सिंगल है? क्या आप फ्यूचर में फेमिली प्लान कर रहे है? क्या आपके पास कोई स्टेबल इनकम है? अगर aapki सिचुएशन भी मिसेज स्मिथ जैसी है तो आप 75% स्टॉक्स में और 25% पैसा बांड्स या कैश में लगा सकते है. लेकिन अगर आप जॉन की तरह है तो आपको अपना 75% बांड या कैश में इन्वेस्ट करना चाहिए. कोई भी इंटेलीजेंट इन्वेस्टर्स ये सोच के कभी भी ज्यादा स्टॉक नहीं लेगा कि स्टॉक प्राइस अभी हाई है.

क्योंकि उसमे पेशेंस और डिसप्लीन होता है. स्टॉक प्राइस से ज्यादा अपनी नीड्स को देखो. क्या आपकी इन्वेस्टमेट आपकी नीड्स के हिसाब से बराबर है? ग्राहम एडवाइज देते है कि हर 6 मंथ्स में अपना प्रोफाइल एस्सेस करते रहो ताकि आप इम्पल्सिव डिसीजन लेने से बचे रहे और आपका पैसा बर्बाद ना जाए. 

 द डिफेंसिव इन्वेस्टर एंड कॉमन स्टॉक्स (The Defensive Investor and Common Stocks)

डिफेंसिव इन्वेस्टर वो होता है जो जानता है कि स्टॉक मार्किट में कितना रिस्क है और कैसे वो खुद को डिफेंड कर सकता है. बांड्स अक्सर कम रिटर्न्स देते है इसलिए us price par स्टॉक्स khareedna logical hoga jo aapke liye kaam karta hai. एक “परमानेंट ऑटोपायलट पोर्टफोलियो” रखना प्रेक्टिकल डिसीजन होगा जिसमे वो स्टॉक्स होते है जो आप हमेशा रखते आये है. लेकिन स्टॉक चूज़ करने से पहले कंपनी के बारे में इन्फोर्मेशन कलेक्ट करना ना भूले.

एक बार आपका ये परमानेंट पोर्टफोलियों बन जाए तो ये आपको हमेशा स्टॉक्स शौपिंग से बचाएगा. एक डिफेंसिव और इंटेलीजेंट इन्वेस्टर बनने का नंबर वन रूल है कि हमेशा अपना होम वर्क करो. जिस कंपनी में पैसा लगा रहे हो उसके बारे में अच्छे से समझ लो. उसकी फाइनेंशिय्ल स्टेटमेंट चेक करो. पीटर लिंच (Peter Lynch) जोकि फिडेलिटी मेगेल्लन के ओनर लोगो को एडवाइज करते है कि हमेशा कॉमन नॉलेज यूज़ करो. किसी न्यू रेस्तरोरेंट, टूथपेस्ट या जींस के ब्रांड की पोपुलेरिटी से पता चल जाता है कि उनका बिजनेस अच्छा चल रहा है इसलिए इन्वेस्टमेट करना सही रहेगा.

अगर आपने एक सही कंपनी ढूंढ ली है तो समझो आपका आधा काम हो गया. अब उसकी फाईनेंशिय्ल स्टेटमेंट चेक करो. ऐक्ट्रेस बारबरा स्ट्रेसेंड (Barbra Streisand) अपनी डे ट्रेडिंग के लिए भी पोपुलर है. उनका तरीका बताता है कि मेजोरिटी ऑफ़ इन्वेस्टर्स कैसे सोचता है. 1999  में उन्होंने कहा कि वो रोज़ स्टारबक्स इसलिए पीती है क्योंकि उन्होंने स्टारबक्स के स्टॉक्स में पैसा इन्वेस्ट किया है. लेकिन सिर्फ इतना ही काफी नहीं है .

एक एक्जाम्पल और है कि बहुत से लोगो ने अमेज़न.कॉम में सिर्फ इसलिए इन्वेस्ट किया क्योंकि उन्हें ये वेबसाईट पंसंद है या लोगो ने ई-ट्रेड स्टॉक इसलिए खरीदे क्योंकि ये उनका पर्सनल ऑनलाइन ब्रोकर है. कुछ लोग किसी म्यूचअल फंड कंपनी में इसलिए इन्वेस्ट करते है क्योंकि उनकी ऑफिस बिल्डिंग शहर में ही है. लेकिन kisi company ko uski asli value se zaada mat socho. अगर aapko company ke baare me kuch zaada hi pata hai तब शायद आपको uski kamiya दिखाई नहीं देंगे. इसलिए लेज़ी इन्वेस्टर मत बनो. अब अगर आप एक डिफेंसिव इन्वेस्टर है जो हमेशा अपना होमवर्क करता है, तो यही सही टाइम है स्टॉक्स लेने का.

आप भी इन टिप्स का फायदा उठा कर एक स्मार्ट इन्वेस्टिंग कर सकते है. सबसे पहले ऑनलाइन ब्रोकर वेबसाईट चेक करो जैसे कि शेयरबिल्डर,कॉम या फोलियोफन.कॉम. ये ब्रोकर वेबसाइट्स पर ट्रांजेक्शंन सिर्फ $4 चार्ज करती है. और इन्वेस्ट करने के लिए कोई मिनिमम अकाउंट बेलेंस लिमिट भी नहीं है. इसमें आप अपने ऑनलाइन बैंक अकाउंट से पैसा डाल सकते हो या फिर अपने डिविडेंडस को रीइन्वेस्ट कर सकते हो. कुछ ऐसी कंपनीज भी अवलेबल है जो अपनी वेबसाइट्स के थ्रू स्टॉक ऑफर करती है जिसका सबसे बड़ा बेनिफिट ये है कि आपको कोई ब्रोकर ढूँढने की भी ज़रूरत नही है..

म्यूचवल फंड्स में इन्वेस्टमेंट करना भी फायदे का सौदा है. ये इन्वेस्टमेंट लो रिस्क और लो कास्ट होती है. इसमें मेंटेनेंस ना के बराबर होती है और ना ही मोनीटरिंग की ज़रूरत पड़ती है. म्यूचवल फंड्स एक तरह से सेफ और स्मार्ट इन्वेस्टमेंट माने जाते है क्योंकि इसमें अप-डाउन्स और अनप्रेडिक्शन रिजल्ट बहुत कम होते है. Vaise Warren Buffet ke according Index Funds sabse best hai.

पोर्टफोलियो पालिसी फॉर द एंटरप्राइजिंग इन्वेस्टर : नेगेटिव अप्रोच (Portfolio Policy for the Enterprising Investor: Negative Approach)

डे ट्रेडिंग का मतलब क्या है? दरअसल डे ट्रेडिंग का मतलब है स्टॉक्स को एक शोर्ट टाइम के लिए होल्ड करके रखना. बहुत से लोग डे ट्रेडिंग करते है लेकिन असल में ये फाइनेंशियल सुसाईंड का सबसे ईजी मेथड माना जाता है. जब आप डे ट्रेड करते हो तो कभी आपको प्रॉफिट होता है लेकिन ज़्यादातर इसमें लोस ही होता है. एक्चुअल में इसका सबसे ज्यादा फायदा आपके ब्रोकर को होता है. डे ट्रेडर्स हमेशा अपने स्टॉक्स की खरीद और बेच को लेकर एक्साइटेड रहते है. और इसी वजह से वो हाई प्राइस में लेते है और लो प्राइस में बेच देते है.

याद रहे जब भी आप अपने स्टॉक की खरीद बेच करते है तो आपको ब्रोकर को भी पे करना होता है. जितना ज्यादा आप डे ट्रेड करेंगे उतना कम रिटर्न्स आपको मिलेगा. जो एक्स्ट्रा कॉस्ट आप पे करते है उसे मार्किट इम्पैक्ट बोला जाता है. हालाँकि आपका ब्रोकर इसे स्टेटमेंट में दिखाता नहीं है. जैसे एक्जाम्पल के लिए, आप बहुत शोर्ट टाइम के लिए 1000 शेयर खरीदना चाहते हो अब क्योंकि आप जल्दबाज़ी में हो इसलिए आप नार्मल प्राइस से 5 सेंट ज्यादा देकर स्टॉक्स लेते हो. तो यही पर आपको $50 एक्स्ट्रा पे करना पड़ा. सेम चीज़ होती है जब आप सेल करना चाहते हो. जल्दी के चक्कर में आप अपने शेयर लो प्राइस में बेच देते हो.

मान लो आपका स्टॉक कोई वुड का टुकड़ा है. तो हर बार खरीद या बेच के वक्त आप इसे सैंड पेपर से घिस रहे हो. Kyunki आप खरीदने के लिए उताबले हो तो 4% एक्स्ट्रा पे कर रहे हो. aur kyunki आपको ise jaldi bechna bhi hai to aap 4% और पे करते हो. टोटल मिलाकर आपने अपने वुड का 8% वेस्ट कर दिया. एक पोपुलर कहावत है” डोंट जस्ट स्टैंड देयर, डू समथिंग”. yaani sirf khade mat raho kuch karte raho. लेकिन ये चीज़ इन्वेस्टिंग में अप्लाई नहीं होती. एक इंटेलीजेंट इन्वेस्टर इसका एकदम अपोजिट करेगा. वो कहेगा ” डोंट डू समथिंग, जस्ट स्टैंड देयर”. yaani kuch mat karo bas khade raho. जब आप लॉन्ग टाइम के लिए स्टॉक्स लेते है तो आपको रिटर्न्स भी ज्यादा मिलता है. 

पोर्टफोलियो पालिसी फॉर द एंटरप्राइजिंग इन्वेस्टर: द पोजिटिव साइड (Portfolio Policy for the Enterprising Investor: The Positive Side)

ग्राहम के बाईंग लो एंड सेलिंग हाई के गोल्डन रुल को आप कितना फोलो करते हो? हर कोई टॉप कंपनीज में इन्वेस्ट करना चाहता है. क्योंकि कॉर्पोरेट जाएंट्स इतनी ईजिली बैंकरप्ट नहीं होते और रिटर्न्स भी ज्यादा देते है. लेकिन प्रॉब्लम ये है कि जितना ज्यादा ये ग्रो करते है उतने ही फ़ास्ट इनके स्टॉक प्राइस badh jaate hai. 1995 से 1999 के बीच कंपनीज होम डिपो, जेर्नल इलेक्ट्रिक और सन माइक्रोसिस्टम हर साल ग्रो करती गयी. सन माइक्रोसिस्टम और होम डिपो का रेवेन्यू डबल हो गया था.

दोनों कंपनीज ने पर शेयर में ट्रिपल अर्निंग की.  जीई (GE’) का रेवेन्यू 29% तक पहुँच गया था. इसकी अर्निंग पर शेयर बढकर 65% तक हो गयी थी. उस टाइम ये स्टॉक्स टॉप पर थे इसलिए काफी एक्सपेंसिव हो गए थे. प्रोब्लम ये है कि स्टॉक्स की ग्रोथ कंपनी की ग्रोथ से आगे निकल जाती है. इसलिए जो इन्वेस्टर्स हाई प्राइस स्टॉक्स लेते है अक्सर उन्हें उतना एक्स्पेक्टेड रिटर्न्स नहीं मिलता है. हम इस बात को कुछ और लेंसस के थ्रू समझने की कोशिश करते है. अगर आप एक्स्ट्रीमली हाई प्राइस दे रहे हो तो चाहे कंपनी कितनी ही टॉप क्यों ना हो, इन्वेस्टमेंट के लिए गुड चॉइस नहीं है. इसे हम फाईनेंशियल फिजिक्स बोलते है. जितनी बड़ी कोई कंपनी होती है उतनी ही स्लो उसकी ग्रोथ होती है. 

जैसे कि कोई न्यू कंपनी है जिसकी वर्थ $1 बिलियन है. तो ज़ाहिर है कि आने वाले साल में ये कंपनी अपनी सेल्स ईजिली डबल कर लेगी. लेकिन अगर कंपनी के स्टॉक $50 बिलियन तक पहुँच जाते है तो ये $50 बिलियन सेल्स कहाँ से लाएगी? अब आप किसी टॉप कंपनी के इतने महंगे शेयर्स कैसे ले सकते हो? तो यहाँ हम अपने इंटलीजेंट इन्वेस्टर्स को एक ट्रिक बता रहे है. हर बड़ी कंपनी आये दिन किसी ना किसी प्रोब्लम या कंट्रोवर्सी में फंसती है. उस टाइम उनकी पोपुलेरिटी कम हो जाती है इसलिए उनके स्टॉक प्राइस भी कम हो जाते है.

2002 में जॉनसन एंड जॉनसन पर केस चला था कि वो अपनी एक फैक्ट्री में फाल्स रिकॉर्ड कीपिंग कर रहे है. उस टाइम कंपनी के स्टॉक एक ही दिन में 16% तक घट गए थे. इसलिए हर शेयर का प्राइस भी काफी कम हो गया था. इंटेलीजेंट इन्वेस्टर्स इस तरह की अपोरच्यूनिटीज का फायदा उठा सकते है. जब ज्यादातर लोगो को जॉनसन एंड जॉनसंन पर डाउट hua, तो आप लोअर प्राइस में स्टॉक्स लेकर रख लो. और जब कंपनी का इश्यू रीज़ोल्व हो जाए तो आप वो स्टोक्स हाई प्राइस पर बेच दो. 

 द इन्वेस्टर एंड मार्किट फ्ल्क्चुएशंस (The Investor and Market Fluctuations)

मार्किट फ्ल्क्चुएशंस का मतलब क्या है? इसका मतलब है स्टॉक प्राइसेस अप एंड डाउन होना. ग्राहम कहते है कि फ्लक्चुएशंस की रिपोर्ट्स को इग्नोर करना ही बेहतर है क्योंकि इससे आप दुसरे इन्वेस्टर्स के मूड से इन्फ्लुएंश नहीं होंगे|

इंकटौमी कोर्प एक टॉप सॉफ्टवेयर कंपनी थी. जून 1998 में मार्किट में आने के बाद इसके शेयर्स 1900% तक इनक्रीज हो गए थे. दिसम्बर 1999 में शेयर प्राइस ट्रिपल हुए और मार्च 2000 में शेयर अपने पीक प्राइस $231.62 पर पहुँच गए थे. लेकिन इंकटॉप के शेयर इतने फ़ास्ट रेट से क्यों बढ़ रहे थे? रीजन ये था कि कंपनी फ़ास्ट ग्रोथ कर रही थी. दिसम्बर 1999 में इंकटॉप ने $36 मिलियन की सेल्स की थी.

अगर नेक्स्ट फाइव इयर्स तक यही ग्रोथ रही तो इसका रेवेन्यू $36 मिलियन पर क्वार्टर से $5 बिलियन पर मन्थ पर phunchne की उम्मीद थी. लेकिन सच तो ये था कि इंकटॉप लोस में चल रही थी. हां, बेशक कंपनी ने सेल्स में $36 मिलियन कमाए थे लेकिन उसी क्वार्टर में इसे $6 मिलियन का भी लोस हुआ था. कंपनी को दो महीने पहले $24 मिलियन का लोस हुआ था और $24 मिलियन का उससे पहले साल में. जबसे इंकटॉप स्टार्ट हुई थी एक्चुअल में इसने प्रॉफिट कमाया ही नहीं था.

फिर भी इन्वेस्टर्स ने इस न्यू कंपनी पर टोटल $25 बिलियन इन्वेस्ट कर लिए थे. $231.62 के पीक पर पहुँचने के दो साल बाद इंकटॉप के शेयर प्राइस घटकर सिर्फ 25 सेंट्स हो गए थे. इसकी मार्किट वैल्यू $25 बिलियन से सिर्फ $40 मिलियन तक रह गयी थी. और वो भी बावजूद इसके कि कंपनी ने $113 मिलियन का रेवेन्यू कमाया था. तो हुआ क्या था? इस एक्सट्रीम चेंज का रीजन क्या था? इसे आप स्टॉक मार्किट मूड स्विंग का एक और एक्जाम्पल मान सकते है. 2000 की स्टार्टिंग में इन्वेस्टर्स टेक कंपनीज में धड़ाधड़ इन्वेस्ट कर रहे थे.

लेकिन दो साल बाद ही इस इंडस्ट्री के बारे में लोगो को डाउट होने लगा था. यही याहू के साथ हुआ. याहू ने $1.65 पर शेयर के साथ इंकटॉप को एक्वायर किया था, इस सिचुएशन में याहू को इंटेलीजेंट इन्वेस्टर माना जा सकता है कि एक बड़ी कंपनी ने इंकटॉप की अनपोपुलेरिटी का फायदा उठाया.

और ग्राहम के कहने का यही मतलब है कि पैशीमिस्ट से खरीदो और ऑप्टीमिस्ट्स को बेच दो. yaani jo log soch rhe hai ki company ki value kam hai unse khareedo aur jo log soch rhe hai ki company ki value bhaut zaada hai unhe shares bech do..अब आप समझ गए होंगे कि स्टॉक मार्किट नेचर से कितनी बाईपोलर है तो क्या आप इसे अपने डिसीजन को अफेक्ट करने दोगे? स्टॉक मार्किट का काम है प्राइस सेट करना लेकिन एक इंटेलीजेंट इन्वेस्टर के तौर पर आपका काम है अपने लिए खुद डिसीजन लेना.

1999 में जब टेक कंपनीज के स्टॉक प्राइस आसमान छू रहे थे, तो हर कोई अपना पैसा इन कंपनीज में इन्वेस्ट करना चाहता था. क्योंकि लोग एक दुसरे को फोलो करते है. इसलिए उन्होंने इस फैक्ट को इग्नोर कर दिया था कि ओल्ड इकोनोमी कंपनीज के शेयर कम हो रहे है. जैसे कि कोका कोला, जिलेट, वाशिंगटन पोस्ट वगैरह. इनके प्राइस 24.9% तक ड्राप हो गए थे. 

अगर आप इंटेलीजेंट इन्वेस्टर है तो आप कभी भी बाकियों की तरह टेक कंपनीज के हाई प्राइस स्टॉक नही लेंगे. बल्कि आप सिचुएशंन का फायदा उठाएंगे और लार्ज अनपोपुलर कंपनीज के शेयर खरीदेंगे. जब आप कोका कोला जैसे कंपनीज के चीप शेयर्स ले सकते हो तो टेक स्टार्ट अप के हाई प्राइस स्टॉक्स लेने का फायदा nhi hai. लेसन ये है कि आप स्टॉक मार्किट को खुद पर हावी ना होने दे. बल्कि अपने डिसीजन खुद कण्ट्रोल करे.

स्टॉक प्राइसेस तो आप कण्ट्रोल नहीं कर सकते लेकिन आप 5 प्रेक्टिकल चीजे तो कण्ट्रोल कर सकते हो जो हमने इस बुक summary में बताई है. फर्स्ट, आप अपनी एक्सपेक्टेशन कण्ट्रोल कर सकते हो. अपने रिटर्न्स को लेकर एक रियेलिस्टिक अप्रोच रखो. सेकंड, आपका रिस्क, आप कब कहाँ और कितना इन्वेस्ट करोगे ये सिर्फ आपका डिसीजन होना चाहिए. थर्ड आपकी नॉलेज. आप चीप प्राइस में स्टॉक खरीदो और पेशेंस रखो.

फोर्थ, आपके टैक्स बिल्स. अगर आप अपने स्टॉक एक साल या पांच साल के लिए रखते हो तो आपकी टैक्स लाएबिलिटी कम हो जाएगी. सबसे इम्पोर्टेंट चीज़ ये है कि आपका apne बिहेवियर में कण्ट्रोल हो. जब सब खरीद रहे है तो आप मत खरीदो. और जब सब बेच रहे है तो आप मत बेचो. एक इंटेलीजेंट इन्वेस्टर वही है जो अपने परमानेंट पोर्टफोलियो की लिस्ट ऑफ़ कंपनीज से टाइम-टाइम पर सेल करता है. वो तभी बेचता है जब उसे वाकई में पैसे की ज़रूरत पड़ती है जैसे कि बीमारी, हाउस पेमेंट या कॉलेज फीस के लिए. एक इंटेलीजेंट इन्वेस्टर स्टॉक मार्किट फ्लक्चुएशंन की ज्यादा टेंशन नहीं लेता बल्कि वो अपनी जजमेंट पर डिपेंड रहता है. और एक इंटेलीजेंट इन्वेस्टर अपने स्टॉक 10 सालो तक भी होल्ड कर सकता है.  

कनक्ल्यूजन (Conclusion)

आपने इस बुक में इंटेलीजेंट इन्वेस्टर के बारे में जाना. आपने स्पेक्यूलेश्न्स और jhuthi bhavishyavaani के बारे में भी जाना. आपने ये सीखा कि अपना परमानेंट ऑटोपायलट पोर्टफोलियो कैसे क्रिएट करे. आपने डे ट्रेडिंग, और मार्किट फ्लक्चुशंस के बारे में जाना. आपकी फाइनेंशियल आउटकम आपके हाथ में है. किसी भी आउट साइड फेक्टर्स को खुद पे कण्ट्रोल ना करने दे. रिच और सक्सेसफुल बनने की पॉवर आपके खुद के हाथो में है. इसलिए भीड़ ka हिस्सा ना बने बल्कि औरो से हटकर एक इंटेलीजेंट इन्वेस्टर बनो. 

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The Intelligent Investor By Benjamin Graham

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